मिहिजाम में आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं ने आपातकाल को बताया लोकतंत्र पर सबसे बड़ा हमला
मिहिजाम, झारखंड: देश में लागू आपातकाल को 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर मिहिजाम नगर स्थित मोतीबाबू मैरेज हॉल में एक विशेष सेमिनार और प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता भाजपा जिलाध्यक्ष सुमित शरण ने की, जबकि मुख्य वक्ता के रूप में धनबाद विधायक श्री राज सिन्हा उपस्थित रहे।
विधायक राज सिन्हा ने अपने संबोधन में कहा कि 25 जून 1975 की रात देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को कुचलते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल थोप दिया। उन्होंने कहा कि “यह भारत के संविधान और जनता के अधिकारों की सीधी हत्या थी। उस समय विरोध करना, अपनी बात कहना तक अपराध बना दिया गया।”
“आज भी जीवित है उस समय की तानाशाही की छाया”
राज सिन्हा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस की आज की राजनीति में भी वही तानाशाही मानसिकता झलकती है। उन्होंने कहा कि इस दिन को संविधान हत्या दिवस के रूप में याद किया जाता है। 21 महीने तक चले उस काले दौर में प्रेस की आज़ादी खत्म हुई, लाखों लोगों की जबरन नसबंदी हुई और न्यायपालिका तक दबाव में आ गई।
“देश की जनता ने दिया था लोकतांत्रिक जवाब”
जिलाध्यक्ष सुमित शरण ने कहा कि “25 जून 1975 भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला दिन है। कांग्रेस ने अपनी सत्ता बचाने के लिए संविधान को कैद कर लिया था।” उन्होंने बताया कि कैसे नेताओं को जेल भेजा गया, जनता की आवाज दबा दी गई और संविधान को ताक पर रख दिया गया। उन्होंने जनता द्वारा 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी को हराकर लोकतंत्र की जीत को ऐतिहासिक करार दिया।
वक्ताओं ने दिलाई लोकतंत्र की रक्षा की शपथ
पूर्व मंत्री सत्यानंद झा ने कहा कि “आपातकाल लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी है कि जब सत्ता अंधी हो जाए, तो नागरिकों का कर्तव्य बनता है कि वह लोकतंत्र की रक्षा करें।”
भाजपा नेता माधव चंद्र महतो ने कहा, “आपातकाल में कानून का दुरुपयोग, प्रेस की आजादी का हनन और हजारों निर्दोष नागरिकों की गिरफ्तारी लोकतंत्र के मूल्यों को कुचलने जैसा था।”
कार्यक्रम का संचालन ज़िला महामंत्री दिलीप हेम्ब्रम ने किया और धन्यवाद ज्ञापन ज़िला उपाध्यक्ष सह कार्यक्रम प्रभारी अभय सिंह ने किया।
निष्कर्ष:
आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर यह आयोजन न केवल एक ऐतिहासिक समीक्षा था, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए नागरिकों को सतर्क रहने का संदेश भी देता है। वक्ताओं ने एक स्वर में यह दोहराया कि लोकतंत्र की रक्षा करना हर नागरिक का दायित्व है।