झारखंड व बिहार में फिल्म निर्माण की असीम संभावनाएं हैं। यहां के कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय की बदौलत राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। यह बातें लघु फिल्म चंपारण मटन के स्क्रीनिंग में पहुंचे निर्देशक रंजन कुमार ने मीडिया से बातचीत करते हुए कही।
बोकारो क्लब के सिनेमा एरिना में इस फिल्म की पहली बार प्राइवेट स्क्रीनिंग की गई। चीन के बीजिंग में भी इसकी स्क्रीनिंग की जाएगी।
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निदेशक रंजन कुमार का बोकारो स्टील के अधिकारियों ने शॉल ओढा कर और मोमेंट को देकर स्वागत किया।
रंजन कुमकर ने बताया कि भारतीय फिल्म व टेलीविजन संस्थान पुणे में शिक्षा ग्रहण कर रहा था। तीसरे वर्ष डिप्लोमा फिल्म बनाने का टास्क दिया गया। चंपारण, बिहार में ननिहाल है।
इसलिए चंपारण पर आधारित फिल्म बनाने का विचार आया। इस पर चिंतन करने के बाद लघु फिल्म चंपारण मटन बनाया। इसकी कहानी कोरोना काल में नौकरी गंवाने वाले युवक के इर्द-गिर्द घूमती है। उसकी गर्भवती पत्नी चंपारण मटन खाने की इच्छा जाहिर करती है। बेरोजगार हो चुके युवक को महंगाई के दौर में मटन खरीदने के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यह कहानी अभिनेता के संघर्ष व मानवीय संवेदना का ताना-बाना बुनती हैं।
संस्थान की टीम को यह फिल्म काफी पसंद आई और उन्होंने इसे आस्कर के लिए भेज दिया। यह फिल्म आस्कर के स्टूडेंट एकेडमी अवार्ड के सेमीफाइनल के लिए चयनित की गई। उन्होंने कहा कि यह 24 मिनट की लघु फिल्म है। इसका आस्कर के लिए चयनित होना ही उपलब्धि है। घरौंदा फिल्म बना रहा हूं। इसकी शूटिंग बोकारो, रांची आदि स्थलों पर की जा सकती है। बोकारो में शूटिंग की बहुत सारे संभावनाएं मुझे दिखाई दी है।